Editorial: राज्यों में भाजपा की जीत से इंडिया गठबंधन में हुई एकजुटता

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BJP victory in the states

विपक्ष के इंडिया गठबंधन की बैठक में अगर प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार को लेकर एक सहमति बनती दिख रही है तो यह गठबंधन के दलों के लिए उचित ही है। हालांकि अभी इसे निश्चित नहीं माना जा सकता, क्योंकि कांग्रेस में तमाम नेताओं के अपने स्वर होते हैं, वहीं गठबंधन दलों के नेताओं के बीच भी कब किस बात पर रार हो जाए, कहा नहीं जा सकता। यह अपने आप में अप्रत्याशित है कि कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडग़े को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाने का प्रस्ताव रखा गया है।

टीएमसी प्रमुख एवं पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी जोकि अभी तक खुद को आगे रखकर चल रही थीं, ने यह प्रस्ताव दिया। इसके बाद आप सुप्रीमो एवं दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल जोकि खुद को पीएम उम्मीदवार का चेहरा मानते हैं, ने भी इसका समर्थन किया। क्या वास्तव में गठबंधन दलों के बीच यह आम राय बन रही है कि कांग्रेस जोकि स्वत: ही गठबंधन की नेतृत्वकर्ता बनी हुई है, के राष्ट्रीय अध्यक्ष को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ प्रधानमंत्री पद का चेहरा बनाकर चुनाव में उतरा जाए। गौरतलब यह है कि इंडिया गठबंधन में प्रधानमंत्री पद को लेकर एक अनार सौ बीमार वाली स्थिति है। ऐसे में विपक्षी दल खुद को पीछे रखकर किस प्रकार कांग्रेस को आगे करने में जुट गए हैं, यह जानना दिलचस्प है।

 बेशक, इंडिया गठबंधन के लिए सबसे जरूरी बात तो यही है कि सभी दल एक मंच पर आएं। हाल ही में पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव इन दलों ने एक-दूसरे के खिलाफ लड़े हैं। लेकिन अब आम चुनाव के लिए वे एक मंच पर आ गए हैं। यह विरोधाभास किसी की समझ में नहीं आ रहा है, लेकिन इतना तय है कि तीन हिंदी भाषी राज्यों मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में जिस प्रकार भाजपा ने प्रचंड जीत हासिल की है, उसने विरोधी दलों को एक मंच पर आने और अपने शिकवे भुलाकर एकजुट होकर चलने को मजबूर कर दिया है। यही वजह है कि दिल्ली में इंडिया गठबंधन की बैठक में सभी नेता पहुंचे और टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी ने तो मल्लिकार्जुन खडग़े का नाम प्रधानमंत्री पद के लिए प्रस्तावित कर दिया। यानी वे चाहती हैं कि बेशक टीएमसी या वे खुद आगे न रहें, लेकिन भाजपा को हराने के लिए वे हरसंभव कोशिश करें, बेशक इसके लिए कांग्रेस का नेतृत्व ही क्यों न स्वीकार करना पड़े। यही स्थिति आम आदमी पार्टी के साथ भी है, वहीं कमोबेश अन्य दलों में भी यही हालात होंगे। हालांकि अभी जनता दल यू के नेता एवं बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की इस संबंध में कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है कि प्रधानमंत्री पद के चेहरे के रूप में वे कांग्रेस अध्यक्ष को स्वीकार करते हैं या नहीं। शायद ऐसी प्रतिक्रिया आए भी नहीं, और यही वजह रहेगी कि गठबंधन के बीच एकता को लेकर सवाल उठते रहेंगे।

इस बैठक को इसलिए अहम माना जाएगा क्योंकि इसमें कुछ आगे बढऩे की चेष्टा की गई है। इस बैठक में आठ-दस साझा रैलियां करने और विरोध प्रदर्शन करने के नाम पर सहमति बनी है। वहीं सीट बंटवारे को लेकर भी 31 दिसंबर तक फैसला करने को लेकर विचार हुआ है। बेशक, कांग्रेस की ओर से समय निर्धारण पर अभी अनिश्चितता दर्शाई गई है, लेकिन यह आवश्यक है कि सभी दल किसी निश्चित खाके पर आगे बढ़ें। इस दौरान पंजाब एवं दिल्ली में सीटों के बंटवारे पर भी बात हुई है। वैसे यह आश्चर्यजनक है कि हरियाणा, पंजाब में कांग्रेस नेता, आप के साथ चलने को राजी नहीं हैं, लेकिन उनका शीर्ष नेतृत्व सीटों के बंटवारे पर मंथन कर रहा है।  

पंजाब में तो राज्य पार्टी नेतृत्व अकेले चुनाव लड़ने की बात कह रहा है, वहीं हरियाणा में कांग्रेस नेता इसकी जरूरत ही नहीं समझते कि आम आदमी पार्टी के साथ मंच साझा कर लें, चुनाव साथ लड़ने की बात तो दूर की कौड़ी है। वैसे हरियाणा जैसे राज्य में कांग्रेस को गठबंधन की आवश्यकता भी नहीं लगती, अब पता नहीं कैसे इंडिया गठबंधन के बीच सीटों की साझेदारी होगी।

इंडिया गठबंधन के नेताओं के लिए यह आवश्यक है कि वे अपनी एकता को और मजबूत करें। लेकिन यह कैसे होगा, यही सबसे बड़ी पहेली है। कांग्रेस में ही प्रधानमंत्री पद के अनेक चेहरे हैं, खुद राहुल गांधी इसके महत्वाकांक्षी हैं, अब मल्लिकार्जुन खडग़े जोकि एक दलित नेता हैं, के नाम पर अगर सहमति बनती है तो यह सत्तापक्ष के लिए चुनौती हो सकता है। लेकिन जनता भी सब समझ रही है, गठबंधन की सरकार वे विकास कार्य नहीं कर सकती, जोकि एक पूर्णबहुमत की सरकार कर सकती है, हालांकि लोकतंत्र में मुकाबला जरूरी है और मुकाबला तभी होता है, जब दूसरी ओर से भी टक्कर देने वाला हो। इंडिया गठबंधन के दलों को इसका श्रेय मिलना चाहिए कि उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा को चुनौती देना स्वीकार किया है। 

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